विवेकचूडामणि आदि शंकराचार्य द्वारा संस्कृत भाषा में विरचित प्रसिद्ध ग्रन्थ है जिसमें अद्वैत वेदान्त का निर्वचन किया गया है। इसमें ब्रह्मनिष्ठा का महत्त्व, ज्ञानोपलब्धि का उपाय, प्रश्न-निरूपण, आत्मज्ञान का महत्त्व, पंचप्राण, आत्म-निरूपण, मुक्ति कैसे होगी, आत्मज्ञान का फल आदि तत्त्वज्ञान के विभिन्न विषयों का अत्यन्त सुन्दर निरूपण किया गया है। माना जाता हैं कि इस ग्रन्थ में सभी वेदो का सार समाहित है। शंकराचार्य ने अपने बाल्यकाल में ही इस ग्रन्थ की रचना की थी।
आदि शंकराचार्य ने अपने ११-१२ वर्ष की आयु में ही संस्कृत भाषा में २५० से ज्यादा ग्रन्थों की रचना की थी। ब्रह्मसूत्रभाष्य, उपनिषद् (ईशोपनिषद, केनोपनिषद, कठोपनिषद, प्रश्नोपनिषद, मुण्डकोपनिषद, माण्डुक्यपनिषद, एतरेय, तैतरीय, छन्दोग्य, बृहदार्ण्यक, नृसिहपूर्वतापनिय, श्वेताश्वर इत्यादि) भाष्य, गीताभाष्य, विष्णुसहस्त्रनामभाष्य, सनत्सुजातीयभाष्य, हस्तामलकभाष्य, ललितात्रिशतीभाष्य, विविकचूडामणि, प्रबोधसुधाकर, उपदेशसाहस्त्री, अपरोक्षानुभूति, शतश्लोकी, दशश्लोकी, सर्ववेदान्तसिद्धांतसारसंग्रह, वाक्सुधा, पंचीकरण, प्रपंचसारतन्त्र, आत्मबोध, मनिषपंचक, आनन्दलहरीस्त्रोत्र इत्यादि उनके प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं जिसमें से एक विवेकचूडामणि है।
0 टिप्पणियाँ: