मार्कण्डेय पुराण प्राचीनतम पुराणों में से एक है। यह लोकप्रिय पुराण मार्कण्डेय ऋषि ने क्रौष्ठि को सुनाया था। इसमें ऋग्वेद की भांति अग्नि, इन्द्र, सूर्य आदि देवताओं पर विवेचन है और गृहस्थाश्रम, दिनचर्या, नित्यकर्म आदि की चर्चा है। भगवती की विस्तृत महिमा का परिचय देने वाले इस पुराण में दुर्गासप्तशती की कथा एवं माहात्म्य, हरिश्चन्द्र की कथा, मदालसा-चरित्र, अत्रि-अनसूया की कथा, दत्तात्रेय-चरित्र आदि अनेक सुन्दर कथाओं का विस्तृत वर्णन है।
मार्कण्डेय पुराण में नौ हजार श्लोकों का संग्रह है। १३७ अध्याय वाले इस पुराण में १ से ४२ वें अध्याय तक के वक्ता जैमिनि और श्रोता पक्षी हैं, ४३ वें से ९० अध्याय में वक्ता मार्कण्डेय और श्रोता क्रप्टुकि हैं तथा इसके बाद के अंश के वक्ता सुमेधा तथा श्रोता सुरथ-समाधि हैं। मार्कण्डेय पुराण आकार में छोटा है। इसमें एक सौ सैंतीस अध्यायों में ही लगभग नौ हजार श्लोक हैं। मार्कण्डेय ऋषि द्वारा इसके कथन से इसका नाम 'मार्कण्डेय पुराण' पड़ा।
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